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आँख का पानी

दीपाञ्जलि दुबे दीप

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16640
आईएसबीएन :978-1-61301-744-9

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दीप की ग़ज़लें

चुनिंदा ग़ज़लें

 

सर्वप्रथम मैं मोहतरमा दीपांजली दुबे दीप जी कानपुर (उत्तर प्रदेश) को उनके पहले ग़ज़ल संग्रह के मंज़रे आम होने के मौके पर तहे दिल से बधाई देता हूँ जिसमें उनके द्वारा वाणी वंदना से आगाज़ करते हुए अपनी चुनिंदा ग़ज़लों को इसमें शामिल किया है। इस ग़ज़ल संग्रह की पांडुलिपि मैंने पढ़ी है और इस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि मोहतरमा दीपांजली जी ने वही सब कुछ अपनी ग़ज़लों में कहा है जो आज आम आदमी की ज़िंदगी में घटित हो रहा है जिसके हर पहलू पर रौशनी डालते हुए इस ग़ज़ल संग्रह को बड़ी बखूबी से सजाया है। सियासत पर तंज करता हुआ एक मतला और एक शेर,

भरोसा अगर हो तो इकरार होगा।
दुखेगा बहुत दिल जो इंकार होगा।।
सियासत की दुनिया में हैं सब फरेबी।
अटल सा न अब कोई किरदार होगा।।

मोहतरमा द्वारा कही गई सभी ग़ज़लें कला पक्ष एवं भाव पक्ष दोनों ही पैमानों पर खरी उतरती हैं।

एक बानगी देखिए,
यह खाली न हो आशियाँ मेरे बाद।
कोई तो कहे दास्ताँ मेरे बाद।।
मेरी जान कुर्बान है देश पर।
कोई काश ढूँढे निशाँ मेरे बाद।।

मोहतरमा दीप जी ने जहाँ एक ओर सामाजिक एवं सियासती हालातों पर अपनी कलम चलाई है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने कुछ रूमानी ग़ज़लें भी कही हैं, जैसे कि:-

मुझे होश अपना न अपनी खबर है।
मुहब्बत का मुझ पर हुआ यह असर है।।
अमीरी गरीबी में क्या फर्क है अब।
परेशान दिखता मुझे हर बशर है।।

आज महँगाई बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मसाइल से सामाजिक ताना-बाना बिखरा हुआ सा जान पड़ता है। मोहतरमा दीप जी ने ऐसे तमाम मुद्दों को बखूबी उकेरा है इस वेशकीमती ग़ज़ल संग्रह में जो युवा पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं। एक मतला गौर फरमाइए,

खुशबुओं का हिसाब होना था।
यानी हमको गुलाब होना था।।
जंग मजहब के नाम पर करते।
उनको तो बेनकाब होना था।।

अपनी मातृभाषा की शान में भी उन्होंने यह ग़ज़ल कही है, जो मुझे बहुत पसंद आई

लिखें हिन्दी पढ़ें हिन्दी कहे हिंदुस्तान हिन्दी।
अगर हैं हिन्द की संतान फिर बोले यहाँ हिन्दी।।
यही है ध्येय चारों ओर हिन्दी का भी परचम हो।
हमारे देश के हर प्रांत में गूँजे सदा हिन्दी।।

इस प्रकार समस्त पांडुलिपि का अवलोकन एवं पठन करने के पश्चात में यह कह सकता हूँ कि मोहतरमा दीपांजलि दीप द्वारा मंज़रे आम उनका यह पहला ग़ज़ल संग्रह निश्चित रूप से काव्य जगत में अपना अनूठा मुक़ाम हासिल करेगा। साथ ही मैं उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में भी उनकी अन्य साहित्यिक कृतियों को भी हमें पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ

सुरेंद्र शर्मा 'सागर'
श्योपुर
मध्य प्रदेश

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